5.छिन्नमस्ता महाविद्या
माँ छिन्नमस्ता का स्वरूप अत्यंत अद्भुत और रहस्यमयी है।
इनका रूप कटा हुआ सिर लिए हुए है, और उनके गले से बहती तीन रक्त धाराएँ उन्हें विशेष बनाती हैं —
जो जीवन, मृत्यु और पुनर्जन्म के गहरे रहस्य का प्रतीक हैं।
इस महाविद्या की उपासना अगर शांत मन से की जाए तो साधक को शांति और समाधि की प्राप्ति होती है,
और यदि उग्र भाव से उपासना की जाए तो देवी का उग्र, विकराल स्वरूप प्रकट होता है।
छिन्नमस्ता देवी का एक प्रमुख मंदिर झारखंड की राजधानी रांची में स्थित है।
कामाख्या पीठ के बाद यह दूसरा सबसे प्रसिद्ध शक्तिपीठ माना जाता है।
मुख्य बातें:
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छिन्नमस्ता का रूप : सिर कटा हुआ, रक्त की तीन धाराएँ।
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उपासना के दो स्वरूप :
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शांत भाव से करने पर साधक को आध्यात्मिक शांति और ध्यान की शक्ति मिलती है।
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उग्र भाव से साधना करने पर सिद्धियाँ और उग्र शक्तियों का आह्वान होता है।
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रांची में स्थित छिन्नमस्ता मंदिर अत्यंत जाग्रत और चमत्कारी माना जाता है।
मंत्र इस प्रकार है:
📿 छिन्नमस्ता देवी का मंत्र:
‘श्रीं ह्रीं ऐं वज्र वैरोचनीयै ह्रीं फट् स्वाहा।’
(इस मंत्र का जाप रुद्राक्ष या रक्तचंदन की माला से करना श्रेष्ठ माना जाता है।)