7.धूमावती महाविद्या
माँ धूमावती को अभाव, विपत्ति, वियोग, और संकटों को दूर करने वाली देवी माना जाता है।
इनका स्वरूप वृद्धा, निशाचरी और धूम्रवर्ण (धुएँ से ढका) होता है।
माँ धूमावती का कोई पति नहीं है — वे स्वयं सिद्ध, स्वतंत्र और पूर्ण हैं।
इनकी साधना से साधक महान तेजस्वी, प्रभावशाली और वशीकरण शक्तियों से युक्त हो जाता है।
ऋग्वेद में भी इन्हें ‘सुतरा’ (संकटों से पार कराने वाली) कहा गया है।
धूमावती साधना विशेष रूप से उन लोगों के लिए उत्तम है जो जीवन के कठिन समय में अद्भुत शक्ति और संरक्षण प्राप्त करना चाहते हैं।
मुख्य बातें:
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माँ धूमावती का स्वरूप धुएँ से आच्छादित वृद्धा रूप में है।
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संकट, वियोग, रोग, दरिद्रता, भय को नष्ट करती हैं।
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साधक को आत्मनिर्भरता, विजय और गूढ़ तांत्रिक शक्तियाँ प्रदान करती हैं।
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विशेष साधना तंत्र मार्ग के साधकों के लिए श्रेष्ठ मानी गई है।
मंत्र इस प्रकार हैं:
📿 बीज मंत्र:
‘धूं धूं धूमावति ठः ठः।’
📿 मुख्य मंत्र:
‘ॐ धूं धूं धूमावती देव्यै स्वाहा।’
(मंत्र जाप सफेद चंदन या काले धागे की माला से करना शुभ माना गया है।)